हिंदी फिल्मों के इतिहास में एक दौर खलनायकों का भी था. वह हीरो से कम नहीं होते थे. कई खलनायक ऐसे हुए जिन्हें हीरो के बराबर फीस मिलती थी. यहां प्राण जैसे विलेन हुए, जिनका जलवा हीरो से ज्यादा रहता था. मगर प्राण के आने से पहले जिन खलनायकों ने दर्शकों को नफरत भरा प्यार मिला, उनमें के.एन. सिंह शामिल थे. 1940-50 के दशक के सबसे लोकप्रिय खलनायकों में शामिल के.एन. सिंह उत्तर भारत के राजसी परिवार से थे. खेलों में रुचि थी. एक दौर में वह जेवलिन थ्रो और शॉट पुट के शानदार खिलाड़ी थी. 1936 में उनका चयन भारत की तरफ से ओलंपिक खेलों में हो गया था परंतु अचानक उनकी बहन बीमार हो गई और वह उसकी देखभाल के लिए कलकत्ता चले गए.
पृथ्वीराज कपूर से उनकी पारिवारिक पहचान थी. जिन्होंने के.एन. सिंह को निर्देशक देवकी बोस से मिलवाया. जहां 1936 में के.एन. सिंह को फिल्मों में पहला ब्रेक मिला. फिल्म थी, सुनहरा संसार. लेकिन खलनायकी का पहला मौका मिला फिल्म अनाथाश्रम (1936) में. फिल्म में वह एक बच्चे का अपहरण करते हैं. 1938 आते-आते के.एन. सिंह फिल्मों में पूरी तरह खलनायक बन गए. वह कलकत्ता से मुंबई आए और उन्हें सफलता भी मिली. फिल्म थी, बागवान. उस दौर में याकूब और ईश्वर लाल जैसे बड़े खलनायक थे. के.एन. सिंह को बागवान में खलनायक की भूमिका मिलने का किस्सा रोचक है, जो खुद उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था.
बागवान का निर्माण उस दौर के विख्यात निर्माता ए.आर. कारदार कर रहे थे. के.एन. सिंह ने बताया कि जब कारदार ने नेगेटिव रोल ऑफर किया तो मैंने कहा कि मैं याकूब या ईश्वर लाल की नकल नहीं करूंगा. मैं अपने अंदाज में करके दिखाता हूं, आपको ठीक लगे तो रखिएगा नहीं तो किसी और को ले लीजिएगा. उस समय कारदार के साथ उनकी पत्नी बहार अख्तर भी मौजूद थीं. कारदार और बहार की उम्र में 15 साल का फासला था. बहार भी पति के साथ फिल्म प्रोड्यूसर थीं. के.एन. सिंह ने बताया कि मैंने एक्टिंग करके दिखाई तो कारदार साहब का रिएक्शन नहीं आया. पूछने पर बोले कि हमें तो समझ नहीं आया. तब के.एन. सिंह ने कहा कि आप दूसरे एक्टर को ले लीजिए.
तब बहार अख्तर ने अपने पति से कहा कि मियां जी, आपका दिमाग खराब हो गया है. आपने के.एन. सिंह की आंखें देखी ही नहीं. सिर्फ बदन देखते हैं. तब कारदार ने अपनी पत्नी से कहा कि ठीक है, इन्हें लेना है तो ले लो. मगर तब मैं सैट पर नहीं आऊंगा. के.एन. सिंह ने बतायाः बहार आपा ने मुझे साइन कर लिया और कारदार साहब ने जैसा कहा था, वही किया. जब मैं सैट पर होता था, तो वह नहीं आते थे. फिल्म पूरी हुई, रिलीज हुई और हिट भी हुई. उस साल सोहराब मोदी की फिल्म पुकार सबसे बड़ी हिट थी, परंतु लोगों ने बागवान को भी खूब पसंद किया. फिल्म में के.एन. सिंह का काम खूब पसंद किया गया और इसके बाद वह 1980 के दशक तक जमे रहे. उन्होंने करीब 200 फिल्मों में काम किया.